रवि प्रकाश जूनवाल
हैलो सरकार ब्यूरो प्रमुख
जयपुर। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थाईलैंड के पटाया में 39वीं अंतर्राष्ट्रीय महिला बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व कर गोल्ड मेडल विजेता प्रिया सिंह मेघवाल ने पूरे विश्व में भारत का डंका बजाने के बावजूद अब तक भी केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार जातिवाद के जहर के कारण भारत पहुंचने पर किसी भी प्रकार भी प्रकार से ना तो राजकीय सम्मान हुआ और ना ही स्वागत और सत्कार हुआ।

काबिले गौर है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दलित एवं आदिवासियों के उत्थान के नाम पर भांति-भांति के योजनाओं की लॉलीपॉप दिखाकर अपना अपना वोट बैंक के रूप में यूज करते हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही होती है। अभी हाल ही में राजस्थान की दलित समाज की बेटी ने न केवल भारत देश का नाम रोशन किया अपितु पूरे विश्व में बॉडीबिल्डर गेम्स में गोल्ड मेडल लेकर आई। परंतु बड़े दुःख और अफसोस की बात है कि गोल्ड मेडल विजेता प्रिया सिंह मेघवाल का किसी ने भी मान-सम्मान करके मनोबल नहीं बढ़ाया। ना ही उन्हें किसी प्रकार की सहायता दी गई।

इतना ही नहीं, राजस्थान की पहली महिला बॉडीबिल्डर प्रिया सिंह मेघवाल, जो तीन बार मिस राजस्थान बॉडी बिल्डिंग चैंपियन रह चुकी है और अब उन्होंने थाईलैंड में आयोजित वर्ल्ड बॉडी बिल्डिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर भारत का मान बढ़ाया है। लेकिन गोल्ड मेडल जीतकर भी वो निराश है। मेडल जीतकर वापस वतन लौटने पर उन्हें एयरपोर्ट से सीधे चुपचाप घर लौटना पड़ा। क्योंकि प्रिया सिंह मेघवाल दलित वर्ग से होने के कारण केंद्र सरकार और राज्य सरकार विश्व स्तरीय गोल्ड मेडल विजेता का मान सम्मान करना उचित नहीं समझा। यदि प्रिया सिंह मेघवाल की जगह कोई सामान्य जाति का विजेता होता तो विदेश में जिस दिन गोल्ड मेडल का खिताब मिलता उसी दिन से भारत आगमन की केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से दुनिया भर की तैयारियां शुरू हो जाती।

बॉडीबिल्डर प्रिया सिंह मेघवाल ने बताया कि राजस्थान सरकार से सम्मान तो दूर की बात है, स्वर्ण पदक की विजेता बनने के बावजूद आज कोई चर्चा भी नहीं है। इसके पीछे प्रिया सिंह कुंठित मन से अपने आप को कोस भी रही है। हालांकि उन्होंने कहा कि, देश के अन्य राज्यों में खिलाड़ियों को जो मान सम्मान मिलता है वो उनको राजस्थान में नहीं मिला। इसलिए खेलो के प्रति राजस्थान हमेशा पीछे भी रहा है जिसकी वजह है सरकार अनदेखा करती है।

गौरतलब है कि प्रिया सिंह का 8 साल की उम्र में बाल विवाह हुआ था। इसके बाद उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले खेल में कदम रखने का फैसला लिया। तब प्रिया ने कई कुरुतियों और बंदिशों का गला घोटते हुए घूंघट से बिकनी तक का सफर तय किया। फिर जिम में नौकरी करते हुए बॉडी बिल्डिंग के प्रति रुचि जगी तो बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर साल 2018, 2019 और 2020 में मिस राजस्थान बॉडी बिल्डिंग चैंपियन बनी। इसके बाद अपने सपनों को पंख देते हुए दृढ़संकल्प से आगे बढ़ी और आज इंटरनेशनल खिताब अपने नाम कर लिया है। लेकिन सरकार की तरफ से इनकी प्रतिभा को अभी तक नवाजा नहीं गया है।

जातीय नफरत के कारण अफसोस इस बात का है कि गोल्ड मेडल जीतकर भी प्रिया निराश है। इसका कारण यह है कि भारत लौटने पर जयपुर के एयरपोर्ट जब वह उतरीं, तो सरकार की ओर से उनका स्वागत ही नहीं किया गया। यहां से प्रिया कार के जरिए अपने घर आ गईं। कहा जा रहा है कि सरकार की ओर से प्रिया सिंह की उपलब्धि को नजरअंदाज किया गया।

प्रिया सिंह मेघवाल की शादी बचपन में ही करीब 8 साल की उम्र हो गई थी। शादी के बाद ससुराल गई और दो बच्चों की मां बनी।
उन्होंने बताया कि वो पांचवीं तक पढ़ी थीं। लेकिन शादी हो गई तो आगे पढ़ाई बंद हो गए। ससुराल में घूंघट लगाकर भेड़-बकरियां चराती थीं। घर पर उस वक्त चूल्हे पर खाना बनाया जाता था। उसके लिए लकड़ियों की व्यवस्था करनी होती थी।

महिला बॉडी बिल्डर प्रिया सिंह ने बताया कि मुझे किसी के घर में झाडू-पोछा करना पसंद नहीं था। लेकिन परिवार की परिस्थितियां ठीक नहीं थी तो एक जिम में काम के लिए इंटरव्यू दिया। मेरी हाइट और पर्सनालिटी की वजह से सिलेक्शन हो गया।

जिम में मुझे बुलाते थे पहलवान: प्रिया सिंह
प्रिया सिंह ने बताया कि जॉब पर रखने के बाद मैं जिम में ट्रेनर बन गई। वहां जिम में मैंने बहुत जल्दी एक्सरसाइज सीखी तो वहां सभी लोग मुझे पहलवान बुलाने लगे थे।

तीन बार गोल्ड जीत चुकी हैं प्रिया सिंह
स्टेट लेवल पर प्रिया सिंह लगातार तीन बार गोल्ड जीत चुकी हैं। प्रिया ने बताया कि राजस्थान में वह बॉडी बिल्डिंग चैम्पियनशिप में मिस राजस्थान 2018, 2019 और 2020 में गोल्ड मैडल जीत चुकी हैं।
महिला को बॉडी बिल्डिंग के लिए करनी होती है तीन गुना ज्यादा मेहनत: प्रिया सिंह
प्रिया मेघवाल का कहना है कि पुरुषों के मुकाबले एक महिला के लिए बॉडी बिल्डिंग के लिए तीन गुना ज्यादा मेहनत और दर्द सहन करना पड़ता है। महिला को वर्क आउट भी पुरुष के मुकाबले तीन गुना ज्यादा करना पड़ता है और डाइट भी तीन गुना ज्यादा लेनी होती है।